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धन की तो ऐसी तैसी असली चीज़ तो मन होता है। परन्तु रौनकलाल के पास मन के सिवाय सब कुछ था। जब तपेदिक़ की बीमारी का शिकार होकर रामदास अपने इकलौते बेटे बंसी को अपने नौकर रौनकलाल के पास छोड़कर गये तो उनके आँख से ओझल होते ही रौनक़लाल अपना गाँव छोड़कर कहीं और चला गया और कुछ महीनों के पश्चात उसके यहाँ पहली सन्तान हुई। परन्तु रौनक़लाल ने बंसी की परवरिश के लिये दिया हुआ पच्चीस हज़ार रुपया अपने लड़के दीपक की उन्नती और पढ़ाई पर खर्च कर दिया।
जब बच्चे जवान हुये तो बंसी माँ-बाप का आज्ञाकारी निकला और दीपक-शहर में एक आवारा युवक प्लाटफ़ार्म के हत्थे चढ़कर आवारा और अय्याश साबित हुआ। बंसी रौनक़लाल के दोस्त शिवचरण की लड़की गोमती से प्रेम करता था। शिवचरण ने दीपक की पढ़ाई के लिये इस शर्तपर रौनक़लाल को रुपया उधार दे रक्खा था की जब दीपक पढ़-लिख कर बड़ा अफ़सर बनेगा तो उसकी शादी गोमती से होगी। और यह भी निश्चित हुआ कि वचन तोड़ने की स्थिति में मुकरने वाले की संपत्ति पर दूसरे का अधिकार होगा। परन्तु गोमती का जन्म तो बंसी के लिये हुआ था। जब लालची बाप को ये पता चला तो उसने बंसी को धक्के मार कर घर से निकाल दिया। बंसी पर पहली बार यह रहस्य खुला की वह रौनक़लाल का गोद लिया हुआ बेटा है। इस बीच में प्लाटफ़ार्म के निरीक्षण में दीपक एक अमीर लक्ष्मीप्रसाद की लड़की सुषमा पर डोरे डाल चुका था। जब लालची रौनक़लाल ने हाथ आती दौलत देखी तो उसने गोमती से चाल चलकर बंसी की खेज में उसे शहर भेज दिया। अब उसका मैदान साफ़ था। परन्तु भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती। इन सब उलझनों का हल सुन्दर नाटकीय ढंग में रजत पट पर देखिये।
(From the official press booklet)